आज़ादी के बाद क्या बदला?
पिछले साल मैंने जियो का सालाना पैक 1660 में डलवाया था ।इस बार 2380 मे।यही विकास हुआ है ।
कोई पूछने वाला नही है।
धार्मिक पाखण्ड, जातिवाद, साम्प्रदायिकता और फर्जी राष्ट्रवाद से ग्रसित आम आदमी, लुटा और मारा जा रहा।
बाजार व्यवस्था के लिए ग्राहक तो चाहिए और ग्राहक के पास क्रय शक्ति भी।
गुणवत्ता और चरित्र का ह्रास हो रहा है।
ये ज्यादा दिन चलने वाला नही है।
आज सच यह है कि भ्रस्ट तंत्र नेता बाबू ठेकेदार का समाज पर बोझ बन चुका
40 करोड़ मध्यम वर्ग 95 करोड़ का वजन उठा रहा।
जहां कमजोर वर्ग के नाम पर बेमतलब सैकड़ों स्कीम चला कर लूट मची हुई है उच्च वर्ग जमाखोरी चंदे टीवी और बैंक्स के बल पर पूंजी हड़पने में लगा हुआ है।
ये 40 करोड़ मध्यम वर्गीय लोग कब तक देश का बोझ उठाएंगे?
हर व्यक्ति यही सोच कर खुश अभी तो मिल रही है रोटी मुझे क्या।खुदगर्ज़ी बुझदिली पाखण्ड और भ्रस्टाचार हमेशा से ही हमारी सभ्यता के हिस्से रहे है।वरना तो कि1700 में ही अंग्रेज़ भगा दिया जाता ।तब लोग उनकी जीत पर तालियां बजा रहे थे।
सिर्फ सत्ता हस्त्रांतरन हुआ है परिवर्तन नही।
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