Too much HR and High salaries dont help

 Too much of HR is poison


बहुत से एच आर डि के लोग ऐसा दिखाते की उनके बिना सिस्टम कॉलेप्स हो सकता है।लाइन मैनेजर मूर्ख होते हैं।

हर वक़्त नई नई थ्योरी लाते है। कैंडिडेट को यह करो वैसे टट्रीट करो वगेरह।

कम्पनी की मजबूरी नही होती पता इनको

ये लोग कोशिश करते कि मैनेजमेंट के केंद्र में हो।


तो क्या जबरदस्ती रखले किसी को ?। एच आर डी नही बॉस लेता है निर्णय।कम्पनी को हर महीने चेक काटना होता है।

मेरे लंबे केरियर में और बतौर कंसल्टेंट हज़ारों इंटरव्यू में मैने पाया

सिर्फ 10% लोग नम्र और अपनी स्किल की सच्चाई समझते है

5% भी चयन लायक नही होते

25% झूठ बोलते हैं

25% ओवर स्मार्ट बनते हैं

70% ज्यादा सेलेरी पर्क्स मांगते हैं चाहे आये कुछ नही

90% की कॉन्सेप्ट क्लेरिटी लौ होती है


एमबीए को तो सीधा एसि केबिन  , खूबसूरत सेक्रेटरी और गाड़ी चाहिए , चाहे कुछ अनुभव और काबिलियत हो या न हो।डिग्री की है वो भी आईआईएम से ।


कम्पनी विज्ञापन देकर कोई गुनाह नही करती।

5 साल से कम के कर्मचारी को 1 साल प्रोबेशन रहना जरूरी।

ज्यादा तनख्वाह और सुविधाएं देने से न लॉयल्टी बढ़ती है न उत्पादकता।

बल्कि और मांगे बढ़ती है।

टरजेट्स , अनुशासन,थोड़ा डर और  किसी ऑफिसर के नीचे अंडर स्टडी रहना जरूरी ।

रेफरल और अपनी लाइन के अनुभवी बेहतर।


जैसे मेडिकल फील्ड में और कानून लाइन में होता है।


आइएएस मतलब ,  घूसो,  मजे करो स्थायी जीवन भर ऐश। डौरी, और अगर कोटा से आया है तो अहसान कर रहा है समाज पर।उसको कुछ नही कहना।


ये सारा चयन सिस्टम बदलना जरूरी।

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