आनंद क्या है ? What is Bliss

जीवन के सबसे बड़े आनंद को खोजने के लिए मैं भी ख़ूब भटका हुआ था । बैठे बैठे अचानक  अवसाद सा छा जाता था। लगता था,आत्मा जैसे , एक अनजान में भटक रही हो । 

कुछ किताबों और कुछ लोगों से फिर मिलना हुआ ।'ध्यान' मेरी ज़िंदगी में अवतरित हुआ । और तब समझ आया की जिसे मैं घड़ी घड़ी कही और खोज रहा था वो तो मेरे पास ही थी ।

हर हर को हर चाहिए, हर हर को हर की आस।

हर हर में हर खोजे फिरे हर तो हर हर के पास।

तो सबके आनंद की अनुभूति अलग अलग हो सकती है और सबके आनंद की परिभाषा भी  अलग हो सकती है।

सच्चा आनंद आपको तब मिलेगा जब आप अपना 'मैं' ख़त्म कर देंगे ।

आपका 'मैं ', यानी अहंकार जहाँ ढह गया, वहाँ आनंद मिलता है ।

लालच, लगाव, द्वेष, डर , ईर्ष्या, अहम और खोखलापन खत्म होने से ही सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

तो जब मैं किसी से प्रेम करता हूँ तो कोशिश करता हूँ की मेरा मैं ख़त्म हो जाए । जब जब ऐसा होता है आनंद मिल जाता है ।

हर व्यक्ति के अंदर एक निर्विकार शून्य है,  जिसके चारों तरफ व्यक्ति व्यसन,वासना,इच्छाओं , और कुकर्मो का मकड़ जाल बना लेता है। इसी जाल जिसे मायाजाल भी कह सकते हैं ,काट कर इस शून्य से साक्षात्कार होना ही सच्चा आनंद है।

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने सत् चित आनंद की व्याख्या की है।

दुख,  सुख , और आनंद अलग अलग हैं ।

सतही सुख आनंद नही है।

सुख का अभाव दुख, दुख का अभाव सुख और सुख और दुख ,दोनो का ही अभाव आनंद है।

सतही क्षणिक सुख, सिर्फ मजा है , आनंद नही।

सच्चा आनंद दो को ही प्राप्त होता है-

या तो महा मूर्ख , 

या परम भक्त

क्योंकि दोनों ही मानवीय दिमाकी झंझटों तनाव से मुक्त होते हैं।

Dr R K Gupta

16/02/2021


Comments

Popular posts from this blog

Right to privacy and Life India

सफर तो मैंने किया था वरना साजो सामान उसके थे

Why Indian consumers not waking up?