कविता: मिट्टी का जिस्म लेकर
मिट्टी का जिस्म ले कर मैं पानी के घर में हूं
मंज़िल है मेरी मौत, मैं हर पल सफ़र में हूं
होना है मेरा क़त्ल, ये मालूम है मुझे
लेकिन ख़बर नहीं कि मैं किसकी नज़र में हूं
पीकर भी ज़हरे-ज़िन्दगी ज़िन्दा हूँ किस तरह,
जादू ये कौन-सा है, मैं किसके असर में हूं?
अब मेरा अपने दोस्त से रिश्ता है अजीब,
हर पल वो मेरे डर में है, और मैं उसके डर में हूं
मुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियां,
मैं तो न जाने कब से भंवर-दर-भंवर में हूं
By
राजेश रेड्डी
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