Indian Economy and mismanagement

बहुत खोज बीन करने के और 2 साल तक  चले गम्भीर विचार विमर्श एवं आई आई एम जैसे संस्थानों में सेमिनार कराने के बाद, रतन टाटा जी को वारिश नही मिला था।आखिर सबसे बड़े शेयर होल्डर के दामाद को ही बनाया अध्यक्ष टाटा ग्रुप का।

फिर हुआ झगड़ा।निकाला।

अब एक प्रोफेसनल उच्च कॉरपोरेट प्रशानिक व्यक्ति को बनाया गया अध्यक्ष। इतने बड़े संस्थान सिर्फ साफ विजन और एक मजबूत कल्चर से ही चल सकते हैं। एक या दो व्यक्ति नही चला सकते।

टाटा प्रशानिक सेवा यही काम करती है टाटा ग्रुप के लिए उच्च अधिकारी तैयार करना जिनको ग्रुप की संस्कृति पॉलिसीज और व्यवहार बताया जाता है।ये कुछ कुछ आई ए एस जैसा ही है।

मुकेश अम्बानी ने भी पिछले 1 साल काफी रिसर्च करने और ढूंढने के बाद दिव्य ज्ञान प्राप्त किया कि अरे चिराग तले अंधेरा।वारिश और सबसे काबिल तो उनके पुत्र और पुत्री घर मे ही हैं।

भारतीय उद्योग घरानों में सिमटा हुआ है जिसको हम पारिवारिक उद्धयोग कहते हैं।इनकी कुछ अच्छाइयां और ज्यादा बुराइयां ही है।

ये सभी कम्पनीज पब्लिक के पैसे से चलती हैं जिनमे हमारा पैसा ,सरकार का पैसा, बैंक्स, विदेशी संस्थागत निवेशक इन्स्युरेंस फंड्स आदि का पैसा लगता है।

शायद लार्सन टूब्रो, जहां से हमने काम शुरू किया था, संभवत इकलौती भारतीय एमएनसी है जो शुद्ध पब्लिक लिमिटेड कॉम्पनी है।पूरी तरह से पब्लिक फंडस और इंजीनियर्स द्वारा संचालित। यहां मालिक के परिवार का कोई हस्तक्षेप नही।यहां मुकेश अम्बानी घुसना चाहता था।पूरे संस्थान के कर्मचारी विरुद्ध हो गए।भागना पड़ा।अम्बानी के पास बड़े शेयर्स हो गए थे।

ये विषय इसलिए जरूरी है कि भारत जैसे ओरिएंटल देशों में जापान को छोड़ कर, भाई भतीजा वाद परिवारवाद और जातिवाद (सिर्फ पुराने भारत क्षेत्र में)  से भरस्टाचार तो फेल ही रहा विश्व स्तर के लोकतांत्रिक संस्थाएं खड़ी करने में हम बिल्कुल नकामयाब रहे।

बेरोजगारी , उच्च लागत , अनुसंधान की कमी और खराब उत्पादकता की जड़ में  अपने आप को विश्व शक्ति बताना , नकल मारना , पेटेंट तोड़ना, शोर मचाना ,परिवारवाद जातिवाद भ्रटाचार और कुर्सी की भूख है।

ये कोई मामूली बात नही ।इस पर सभी को विचार करना होगा।

मुनाफाखोरी ,चोरी और जुमलों से नही बनते महान देश।

कीमतें बढ़ा कर तो कोई गधा भी संस्थान और राज्य चला सकता है।

कीमतें घटा कर उच्च गुणवत्ता और उत्पादकता से ही बनता है महान समाज।यही चीन की सफलता का है राज।

यहां तो हर दिन दाम बढ़ाओ, दाम बढ़ाओ। ये विकास है 

इससे हमारी कामजोरियाँ छुप जाती है और कुछ लोग चोरी और लूटमार में ही अपनी सफलता ढूंढते हैं।

प्रोपेगेंडा विकास नही।ये स्वार्थ है कुर्सी की हवस।

दाम स्थिर रख कर या कुछ घटा कर , उच्च गुणवत्ता लाना ही प्रबंधन है । तभी बनेंगे हम विश्व शक्ति ।

असमानता और गरीबी भी तभी होगी कम।

आज तो हम चीन को तो छोड़ो  बांग्लादेश से भी पीछे हैं।

पिछले 10 साल में ढोल पीटने के सिवा कुछ नही हुआ।नतीजा? खाद तक नसीब नही किसान को।आयात करनी पड़ रही है।

जुराबें तक चीनी मशीनों से बन रही है। चंडीगढ़ के पास मोहाली में 70 के दशक में सेमी कंडक्टर डिवाइसेस स्तापित की गई।लेकिन उसको आगे बढ़ने नही दिया गया।

आज भी वो घड़ियों के माइक्रो चिप्स तक सीमित है जबकि ताइवान जैसे छोटे देश पूरी तरह से इस व्यापार पर हावी हैं।

बस कुर्सी  पकड़ो, घूस जाओ , लूटो, अय्याशी करो और जुमले फेंको😊

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