तमाम उम्र चिरागों के आसपास रहे -बाल गोपाल भारतीय

राम गोपाल भारतीय की उम्दा शायरी आज के दौर पर:

हिंदी और उर्दू का सम्मिलित इस्तेमाल कवियों द्वारा  ही भारत के साहित्य की खूबसूरती:


तमाम उम्र चिराग़ों के आस- पास रहे

हमारे दौर के जुगनू , मगर उदास रहे


उधर फ़क़ीरों की महफ़िल में मय बरसती रही,

इधर अमीरों के खाली पड़े गिलास रहे


मुझे वो हौंसला देना की शेर पढता रहूँ

तुम्हारे होंठ पे जब तक ग़ज़ल की प्यास रहे


कठिन है दौर , ज़रूरी है आदमी बनना,

हमारा कोई धरम हो , कोई भी लिबास रहे

😊😊😊

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